जब तक व्यक्ति में अविद्या रहती है, तब तक उसमें राग द्वेष आदि दोष भी उत्पन्न होते रहते हैं
जब तक व्यक्ति में अविद्या रहती है, तब तक उसमें राग द्वेष आदि दोष भी उत्पन्न होते रहते हैं
गर्वित मातृभूमि/रायपुर:- सांख्य दर्शन में महर्षि कपिल जी ने बताया है, कि *“रागविरागयोर्योग: सृष्टि:”*, अर्थात “यह जो संसार है, यहां 24 घंटे राग द्वेष चलता ही रहता है।” इन दोनों का अर्थात राग और द्वेष का मूल कारण अविद्या है। वेदों के आधार पर ऋषियों ने यह बताया है, कि “जब तक व्यक्ति में अविद्या रहती है, तब तक उसमें राग द्वेष आदि दोष भी उत्पन्न होते रहते हैं, और तब तक उसका जन्म भी आगे आगे होता रहता है।” “इसीलिए संसार में कोई भी व्यक्ति राग द्वेष रहित दिखाई नहीं देता। जन्म से ही सभी में कुछ न कुछ मात्रा में राग द्वेष आदि दोष होते ही हैं।”
“इन्हीं दोषों का निवारण या समाप्ति करने के लिए ही संसार में मनुष्य का जन्म हुआ है।” अतः मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य तो यह था, कि *”वह अपने अविद्या राग द्वेष आदि दोषों को दूर करके मोक्ष की प्राप्ति करे।” “परंतु ऐसा काम तो पूर्व जन्मों का कोई संस्कारी व्यक्ति ही कर पाता है। बाकी सब लोग तो संसार के रागी द्वेषी लोगों का ही अनुकरण करते हैं।”
अब जब लोगों में अविद्या राग द्वेष आदि दोष होते ही हैं, तो इन दोषों के कारण उनमें कुछ न कुछ लड़ाई झगड़े भी होते रहते हैं। “जिन जिन लोगों के विचार आपस में कुछ अधिक मिल जाते हैं, उनमें झगड़े भी कम होते हैं।” “जिन लोगों के विचारों में टकराव अधिक होता है, उनमें लड़ाई झगड़ा भी अधिक होता है। जब जब लड़ाई झगड़ा होता है, तब तब आपस में संगठन कमजोर पड़ता है, संबंध कमजोर हो जाते हैं।” “यदि वह लड़ाई झगड़ा बार-बार होता रहे, और बड़े स्तर पर होता रहे, तो अंत में संबंध टूट भी जाते हैं।”
हम मनुष्य लोग अकेले, जीवन को ठीक प्रकार से अर्थात सुख पूर्वक नहीं जी पाते। क्योंकि हम अल्पज्ञ और अल्पशक्तिमान हैं, इस कारण से हमें दूसरों से बहुत सी सहायता लेनी पड़ती है। *”इसलिए यदि जीवन को सुख पूर्वक जीना हो, तो दूसरों से सहायता लेनी आवश्यक है। उसके लिए दूसरों के साथ उत्तम संबंध बना के रखना भी आवश्यक है।” “इसके लिए जब जब भी आपस में कोई छोटा मोटा लड़ाई झगड़ा हो, तो उसे सहन करने का प्रयत्न करें, ताकि संबंध टूटे नहीं, और एक दूसरे को, एक दूसरे से सहयोग मिलता रहे।” इसलिए छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई झगड़ा नहीं करना चाहिए, और परस्पर संबंध नहीं तोड़ना चाहिए।
परंतु सब लोग इतने धैर्यशाली बुद्धिमान एवं सहनशील नहीं होते, जो कि वे इस नियम का पालन कर सकें, कि *”आपस में छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा न करें।” “अपने मिथ्या अभिमान हठ दुराग्रह आदि दोषों के कारण वे छोटी-छोटी बातों पर झगड़े करते ही रहते हैं।”
जब इन मिथ्या अभिमान हठ दुराग्रह आदि दोषों के कारण सहनशीलता कम हो, और अनेक बार आपस में लड़ाई झगड़ा हो जावे, और किसी भी प्रकार से विचारों में तालमेल न हो पाए, तब अंतिम स्थिति में संबंध तोड़ देना ही ठीक है। *”अन्यथा किसी को डिप्रेशन हो जाएगा, कोई अति तनाव युक्त होकर न जाने कौन सा अप्रिय कदम उठा बैठे। या तो वह स्वयं आत्महत्या कर लेगा। या दूसरे व्यक्ति को मार देगा। या कहीं आग लगा देगा। अथवा न जाने क्या कुछ भी कर सकता है।”
*”परन्तु छोटी छोटी बातों पर संबंध तोड़ देना ठीक नहीं है। यदि आपस में तालमेल बना सकते हों, तो अवश्य ही तालमेल बनाकर रखें। अपने अंदर कुछ सहनशक्ति को बढ़ाएं, जिससे कि आपका और दूसरों का जीवन सुखमय ढंग से चलता रहे।”
—- *ज्योतिष कुमार रायपुर छत्तीसगढ़।*