मुख्यमंत्री ने अपर कलेक्टर द्वारा लिखी पुस्तक “जिला प्रशासन की बदलती भूमिका और ग्रामीण विकास का विमोचन किया
मुख्यमंत्री ने अपर कलेक्टर द्वारा लिखी पुस्तक “जिला प्रशासन की बदलती भूमिका और ग्रामीण विकास का विमोचन किया
जिला ब्यूरो बिनोद कुमार
गर्वित मातृभूमि/बेमेतरा:- जिले के अपर कलेक्टर डा. अनिल बाजपेयी द्वारा लिखी गई पुस्तक “जिला प्रशासन की बदलती भूमिका और ग्रामीण विकास का विमोचन बेमेतरा प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रदेश के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, कृषि मंत्री मंत्री रविन्द्र चौबे, संसदीय सचिव गुरुदयाल सिंह बंजारे और बेमेतरा के विधायक आशीष छाबड़ा के अलावा दुर्ग विश्वविद्यालय की कुलपति अरूणा पल्टा विशेष रूप से उपस्थित थी। यह पुस्तक अपने वृहद और सूक्ष्म अनुसंधान से जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली में हुए बदलाव तथा ग्रामीण विकास के विविध संदर्भों पर एकाग्र है और लेखक डा. अनिल बाजपेयी ने अपने सुदीर्घ प्रशासनिक अनुभवों को इस पुस्तक में एक मार्गदर्शक की तरह उपयोग किया है। ग्रामीण विकास के विभिन्न योजनाओं के भीतर के मर्म, उसके क्रियान्वयन के लिए तत्परता और परिणामों को गहराई से विश्लेषित किया गया है।वास्तव में यह पुस्तक प्रशासन व ग्रामीण विकास के अंतरसम्बंध की दृष्टि से कल्याणकारी राज्य के संवैधानिक स्वप्न के आलोक में जिला प्रशासन के ग्राम सम्पोषी तथा ग्राम विकासमूलक जीवट कार्यों का लेखा जोखा ही नहीं एक दर्पण के समान भी है।
जिला प्रशासन की बदलती भूमिका के संदर्भ में लेखक का विचार है कि स्वतंत्रता के बाद से अब तक जिला प्रशासन के ढांचागत स्वरूप में कोई बदलाव परिलक्षित नहीं होता है लेकिन उसकी कार्यप्रणाली में उसके व्यवहार में काफी बदलाव दिखाई देता है। आज जिला प्रशासन ने राजस्व संग्रहण एवं कानून व्यवस्था के सीमित दायरे से बाहर आकर अपने कार्यक्षेत्र में व्यापक विस्तार लिया है। नागरिक सेवाओं के प्रति अब वह ज्यादा प्रतिबद्ध और संवेदनशील हुआ है। पंचायती राज व्यवस्था ने जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को एक दूसरे के करीब लाने का काम किया है। दोनों में बेहतर तालमेल के साथ विकास की गतिविधियां मूर्त रूप ले रही है। छत्तीसगढ़ में सुशासन को विशेष प्रतिष्ठा हासिल हुई है और यह राज्य अपनी नीतियों और विकास के प्रक्रम में अपनी स्थापना के बाद बहुत जल्दी देश के अन्य विकसित राज्यों के समकक्ष आ खड़ा हुआ है। लेखक के अनुसार नरवा गरुवा घुरूवा बाडी और गोधन न्याय जैसी योजनाओं के माध्यम से छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति को अक्षुण रखते हुए गांव के विकास की जो परिकल्पना की गई है वह गढ़वो नवा छत्तीसगढ़ जैसे ध्येय वाक्यो और संकल्पनाओं के साथ अवश्यमेव साकार होंगी। छत्तीसगढ़ी संस्कृति में रचे बसे माटीपुत्र मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जिस तरह से गांधी जी के ग्राम सुराज की संकल्पना को साकार करने दृढ़ संकल्पित हैं हम उम्मीद कर सकते हैं गांधी न सही गांधी के विचार और उसकी नीतियां छत्तीसगढ़ में पुनर्जीवित होंगी और यह राज्य विकास के प्रकम में देश में उच्च स्थान को प्राप्त करेगा। पुस्तक की एक अति महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें लेखक ने सीधे जिला प्रशासन और ग्रामीण विकास से जुड़े लोगों से साक्षात्कार अनुसूची के माध्यम से सार्थक चर्चा की है और ग्राम्य विकास के हितग्राहियों, जनप्रतिनिधियों और अधिकारी कर्मचारियों से प्राप्त विचारों का गहराई से विश्लेषण किया गया है। अपने आकर्षक कव्हर पेज और रंगीन पृष्ठों में मुद्रित यह पुस्तक सही मायने में जिला प्रशासन के बहाने समूचे छत्तीसगढ़ और भारत के जिला प्रशासन को शब्दकोष की तरह प्रेरणा देता है।