मंजूर अंसारी बा इज्जत बरी, पॉक्सो एक्ट मैं हुआ था मुकदमा दर्ज
मंजूर अंसारी बा इज्जत बरी, पॉक्सो एक्ट मैं हुआ था मुकदमा दर्ज
गर्वित मातृभूमि/मध्यप्रदेश:- देवास ( सत्तार खान सैयद) कभी-कभी किसी पर दया करना कितना भारी पड़ जाता है और किस तरह फिर सच की जीत होती है इसका जीता जागता उदाहरण यह मुकदमा है जहां मंजूर अंसारी ने इस गरीब परिवार की मदद करने की नियत से साथ में खड़े रहकर लड़ाई लड़ने की ठानी थी और साथ दिया था मगर कहने में आकर उल्टा उन्हीं पर लड़की ने मुकदमा दर्ज करवा दिया था।
हमसे बात करते हुए मंजूर अंसारी ने बताया कि मैं ठेकेदार हूं और लड़की का पूरा परिवार हमारे साथ काम करता था लड़की का किसी से प्रेम प्रसंग था मां-बाप को इसकी जब खबर लगी उन्होंने मेरा सहारा लेकर पुलिस में आवेदन देने की ढानी। मैं लड़की के परिवार के साथ थाने पहुंचा और यही बात लड़की और सामने वाले पक्ष को नागवार गुजरी और उन्होंने मुझ पर झूठा इल्जाम लगाते हुए कई आरोप लगाए। पुलिस ने बगैर मुझे सुने और तफ्तीश किए बिना तुरंत मुझ पर पास्को एक्ट की धारा लगाकर गिरफ्तार कर लिया। जिससे मैं मानसिक रूप से भी प्रताड़ित हुआ और मुझे कई महीने जेल में भी रहना पड़ा।
एडवोकेट जितेन्द्र पुरोहित ने सफलतापूर्वक पैरवी करते हुए इस निर्दोष व्यक्ति मोहम्मद मंजूर अंसारी को पॉक्सो एक्ट की धारा 3, 4, 5एन/6, दुष्कर्म की धारा 376, 376(3), 376(2)(सीएच) और एस सी/एस टी एक्ट की 3(1), 3(2) के झूठे मुकदमें में सभी आरोपों से दोषमुक्त करवा लिया। उक्त फैसला माननीय पॉक्सो अदालत जिला देवास की माननीय न्यायाधीश कु महजबीन खान साहब ने दिया। निर्दोष व्यक्ति बिना कुसूर के 1 दिसंबर 2021 से 1 अप्रैल 2022 तक 4 माह तक जेल में भी रहा। तब भी एडवोकेट जितेन्द्र पुरोहित ने माननीय उच्च न्यायालय में जमानत आवेदन में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पीडि़ता द्वारा घटना 19 नवंबर 2021 की बताई है और एफआयआर 1 दिसंबर 2021 को कराई है जबकि इस बीच दिनांक 22/11/2021 को पीडि़ता किसी लड़के के साथ भाग गई थी जिसकी गुमशुदगी की एफआयआर हाई कोर्ट में प्रस्तूत की गई थी। माननीय उच्च न्यायालय ने भी मामले को संदेहपूर्ण मानते हुए आरोपी को जमानत पर रिहा किया था। देवास की पॉक्सो कोर्ट में पीडि़ता और अन्य गवाहों के परीक्षण और मुख्य परीक्षण में अभियोजन अपने मामले को सिद्ध नही कर सका और न ही यह सिद्ध कर सका कि पीडि़ता 18 वर्ष से कम उम्र की होकर अवयस्क है। एडवोकेट जितेन्द्र पुरोहित के तर्कों से सहमत होकर पॉक्सो न्यायालय ने दिनांक 26 अगस्त 2022 को फैसला सुनाते हुए आरोपी को बाइज्जत बरी कर दिया। एडवोकेट जितेन्द्र पुरोहित ने कहा कि निसंदेह पॉक्सो एक्ट अवयस्क बच्चों को लैंगिक शोषण से बचाने का एक बेहतर माध्यम है परंतु कई बार इसका दुरूपयोग भी होता है। इस मामले में भी निर्दोष व्यक्ति को बिना किसी जुर्म के 4 महीने जेल में रहना पड़ा यह साफ तौर पर मानव अधिकारों के हनन है।