“पेड़ो ने आज फिर से आवाज लगाई है” अंकुर यादव (एक आवाज जंगलों की हसदेव)
अभी तो ये अंगड़ाई है।
आगे तो और भी लड़ाई है।
पेड़ों ने आज फिर से आवाज लगाई है।।
इस बार हसदेव अरण्य के पेड़ो ने आवाज लगाई है।
क्योंकि यह जल ,जंगल, जमीन की लड़ाई है।
इसमें हम सबकी भलाई है।
सरकार ने तो सिर्फ इसे चुनावी मुद्दा बनाई है।
पेड़ों ने आज फिर से आवाज लगाई है।।
आप क्यों भूल गए महामारी से पेड़ों ने हमारी जान बचाई है।
क्या ये सिर्फ हमारे आदिवासी भाई- बहनों की लड़ाई है।
पेड़ों ने आज फिर से आवाज लगाई है।।
वृक्षों में बसे हमारे इष्ट देवो ने आवाज लगाई है।
क्या यह सिर्फ हम आपकी लड़ाई हैं।
पेड़ों ने आज फिर से आवाज लगाई है।।
रो रही है आज हसदेव अरण्य की धरा।
क्यों की आज तक उसने केवल जान बचाई है।
आज उस पर ही जान की बात बन आई है।
पेड़ों ने आज फिर से आवाज लगाई है।।
कहां जाओगे मुझे छोड़कर की आवाज जंगलों से आई है।
वृक्षों व वन्यजीवों की विकास व इतिहास की चिंता जताई है।
पेड़ों ने आज फिर से आवाज लगाई है।।
मैंने तुमको सब कुछ दिया।
फिर ये कैसे विकास की बात आई है।
पेड़ों ने आज फिर से आवाज लगाई है।।
मैं हरी मेरे पत्ते हरे।
फिर ये जंगलों पर काली बादल कैसी छाई है।
क्या यही विकास है जिसने जंगलों के उजाले में काली रात लाई है।
पेड़ों ने आज फिर से आवाज लगाई है।।
मैं नहीं रही तो कुछ ना बचेगा ।
यह बातें बतलाई है।
वन्य जीव ने भी अब शहरों की राह अपनाई है।
पेड़ों ने आज फिर से आवाज लगाई है।।
नहीं चाहिए ऐसी विकास।
जंगलों से फिर एक बार आवाज आई है।
अंकुर ने भी इस बात पर निराशा जताई है।
पेड़ों ने आज फिर से आवाज लगाई है।
पेड़ों ने आज फिर से आवाज लगाई है।।
मैंने अपने इस कविता “पेड़ों ने आज फिर से आवाज लगाई है” के माध्यम से आप लोगो तक वृक्षों के महत्व व हसदेव अरण्य में चल रहे वनों की कटाई पर वृक्षों की निराशा व्यक्त की है।
✍️अंकुर कुमार यादव
ऐतमानगर (बांगो)
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