हसदेव हू एक अनकही अनसुनी इतिहास कविता के माध्यम से मन की बात, अंकुर यादव
मैं हसदेव हूं, हां मैं हसदेव हूं।
मैं नदी नहीं विकास हूं।
मैं इतिहास हूं और मैं ही वर्तमान हूं।
मैं गांव शहर और राज्यों का विकास हूं।
मैं नदी ,नालों और झरनों का विकास हो।
मैं हंस देव हूं हां मैं हसदेव हूं।।
मैं कोरिया की पहाड़ी का अनूठा इतिहास हूं।
मैं जंगलों के जीवन का इतिहास हूं।
मैं साल सागोन और सरई का इतिहास हूं।
मैं कौरव- पांडव का इतिहास हूं।
मैं सरगुजा की सुंदरता का इतिहास हूं।
हां मैं हसदेव हूं, और नदी नहीं विकास हूं।
माना मैं गंगा नहीं यमुना नहीं।
लेकिन इनमें मिलने का एक प्रयास हूं।
मैं हसदेव हूं और छत्तीसगढ़ के जंगलों का इतिहास हूं।
मैं जंगलों का इतिहास हूं मैं कोरबा मेरा राख हूं।
मैं बिजली का प्रकाश हूं।
हां मैं हसदेव हूं, और मैं ही विकास हूं।।
मैं जंगलों से निकलने वाले काले हीरे का प्रकाश हूं।।
मैं लोगों ( वन्यजीव )के जीवन की आश हूं।
हां मैं हसदेव हूं ,मैं ही विकास और मैं ही इतिहास हूं।।
हां मैं हसदेव हूं , बागों मैं ठहरी छत्तीसगढ़ की आश हूं।
बांगो के मनोरम दृश्य का राज हूं।
मैं बांगो की प्रसिद्धि का अनूठा इतिहास हूं।
मैं हसदेव हूं, मैं नदी नहीं विकास हूं।
मैं हसदेव हूं ,मैं नदी नहीं विकास हूं।।
मैं इन कविता के माध्यम से हसदेव अरण्य के बचाव के लिए चल रहे आंदोलन को लोगो के बीच जगरूकता के रूप में मन की बात को कविता के माध्यम में लिख कर हसदेव का इतिहास व आज के वर्तमान में हो रहे विकास के नाम पर जंगलों का विनाश से हसदेव अरण्य की निराश भावना जो बताने का कोशिश कर रहा हु।
धन्यवाद
मन की बात - अंकुर यादव
ऐतमानगर (बागों)
कोरबा(छ. ग.)
वाट्स -9407839341
मो -626109510 (raavtankur007@gmail.com)