परम कल्याणी- महानदी”देखिए खास खबर…….
गर्वित मातृभूमि विजय कुमार देशलहरे विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है-भारत। इसमें बहुरंगी विविधता, उन्नत सभ्यता एवं समृद्ध सांस्कृतिक विरासत विद्यमान हैं। यह अपने आपको समय के साथ ढालते हुए 21वीं सदी में पहुँच चुका है। भौगोलिक दृष्टि से विश्व का सातवाँ बड़ा देश होने के नाते भारत शेष एशिया से अलग दृश्यमान होता है। पर्वत, समुद्र और नदियाँ इसे विशिष्ट भौगोलिक पहचान देती है। उत्तर में वृहत पर्वत श्रृंखला नगराज- हिमालय से घिरा भारत कर्क रेखा से आगे सँकरा होता जाता है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर और दक्षिण में हिन्द महासागर इसकी सरहद निर्धारित करते हैं।
छत्तीसगढ़ कई नदियों का घर है तो कुछ नदियों की राह भी। यहाँ की प्रमुख नदियों में महानदी, शिवनाथ, अरपा, इन्द्रावती, शबरी लीलागर, हसदो, पैरी और सोंढूर प्रमुख है। महानदी और उसकी सहायक नदियों का हिस्सा राज्य के जल संसाधनों का लगभग 60% है। छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा और गंगा के समान पावन मानी जाने वाली प्रसिद्ध नदी है- महानदी। यह प्रदेश के धमतरी जिले के सिहावा पर्वतमाला से निकलकर कुल 890 किलोमीटर बहती है। इसमें से लगभग 300 किलोमीटर की यात्रा छत्तीसगढ़ की सीमा के अन्दर होती है।
छत्तीसगढ़ प्रदेश के अन्दर महानदी धमतरी, महासमुन्द, कांकेर, दुर्ग, रायपुर, जांजगीर-चांपा, रायगढ़, जशपुर इत्यादि जिलों से होकर गुजरती है। यह दक्षिण से उत्तर की ओर जाती है। तत्पश्चात अपने प्रक्षेप-पथ को परिवर्तित कर पश्चिम से पूर्व की ओर पड़ोसी राज्य उड़ीसा में प्रवाहित होती है और अन्ततः बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इसकी बाँयी ओर की सहायक नदियों में शिवनाथ, पैरी, सोंढूर, हसदो तथा अरपा प्रमुख हैं तथा दायीं ओर की सहायक नदियों में जोंक और खारुन प्रमुख हैं।
‘चित्रोत्पला’ महानदी के प्राचीन नाम है। यह ‘महानन्दा’ और ‘नीलोत्पला’ भी कही जाती थी। राजिम में यह पैरी और सोंढूर से मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है, फिर विशाल रूप धारण कर लेती है। ऐतिहासिक नगरी आरंग और फिर सिरपुर में विकसित होकर शिवरीनारायण में अपने नाम के अनुरूप ‘महानदी’ बन जाती है। महानदी की धारा यहाँ से मुड़कर दक्षिण से उत्तर की बजाय पूर्व दिशा में बहने लगती है। महानदी सम्बलपुर जिले में प्रवेश कर छत्तीसगढ़ से विदा ले लेती है। इस पर बने प्रमुख बांध रुद्री, गंगरेल और हीराकुण्ड है। उड़ीसा के सम्बलपुर से लगभग 17 किलोमीटर दूर महानदी में निर्मित ‘हीराकुण्ड बांध’ संसार का सबसे बड़ा और लम्बा बांध है। इसकी कुल लम्बाई 25.8 किलोमीटर है और ऊँचाई 200 फीट है। इसमें 14 गेट हैं। इस बांध के पीछे विशाल जलाशय है, जो एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा कृत्रिम झील है।
महानदी का ऐतिहासिक एवं व्यावसायिक महत्व है। इस ऐतिहासिक नदी के तटों से शुरू हुई मानव सभ्यता धीरे-धीरे नगरों तक पहुँची। यह विशाल जल-राशि धारण करती है। फलस्वरुप पेयजल, खेतों की सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन तथा उद्योगों को पानी भी देती है। इतिहासकारों की मानें तो महानदी के जल-मार्ग से कोलकाता (पूर्व में जिसे कलकत्ता कहते थे) तक वस्तुओं का आयात-निर्यात होता था। गिब्सन नामक अंग्रेज विद्वान की रिपोर्ट के अनुसार- महानदी के तटवर्ती क्षेत्रों में हीरा प्राप्त होता था।
महानदी का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व भी है। यह छत्तीसगढ़ और उड़ीसा की सांस्कृतिक परम्परा को जोड़ने का एक सशक्त माध्यम है। छत्तीसगढ़ में इसको ‘काशी’ और ‘प्रयाग’ के समान पवित्र और मोक्षदायी माना गया है। यहाँ के लोग परिजनों के दाह संस्कार पश्चात शिवरीनारायण के घाट पर महानदी में उनकी अस्थि एवं भस्म तक ठण्डा करते हैं। महानदी ने छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक नदी सभ्यता को जन्म दिया है। महानदी और उसकी सहायक नदियाँ पंजाब की सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के समान गौरव-गाथा से समृद्ध हैं।
आज भारत की अन्य नदियों की तरह महानदी को भी नीति-नियंताओं द्वारा अतिक्रमण एवं विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से बचाने की आवश्यकता है। अन्यथा जल संकट गहराएगा तथा प्राकृतिक असन्तुलन उत्पन्न होगा। साथ ही ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ेगा। आइए हम सब पावन सरिताओं को नमन् करते हुए उन्हें स्वच्छ रखने हेतु शपथ लें। इसी में हम सबका कल्याण निहित है। नदी के बारे में मेरी चन्द पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं :
चट्टानों से टकराती हूँ, उन्हें चीरती जाती हूँ।
बाधाओं से बिन घबराए, अपनी राह बनाती हूँ।
बिना थके बिना रुके, पथ पर बढ़ती जाती हूँ।
मेरे तट पर तीर्थ सारे, सब पाप-सन्ताप मिटाती हूँ।
बांधों और नहरों से होकर, खेतों की प्यास बुझाती हूँ।
परहित सरिस धर्म नहीं, सन्देश सबको दे जाती हूँ।
प्रियतम सागर से मिलकर, परम शान्ति पा जाती हूँ। डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति साहित्य वाचस्पति हरफनमौला साहित्य लेखक