भारत सरकार के सर्वोच्च संस्थान की चेतावनी: हसदेव अरण्य में नई कोयला खदान खोली तो मानव-हाथी द्वंद इतना भयानक होगा कि राज्य से संभाले नहीं संभलेगा…संकटग्रस्त वन्यजीव रहे है यहाँ…….कहा नो-गो एरिया घोषित करें..देखिए खास खबर…
भारत सरकार के सर्वोच्च संस्थान की चेतावनी: हसदेव अरण्य में नई कोयला खदान खोली तो मानव-हाथी द्वंद इतना भयानक होगा कि राज्य से संभाले नहीं संभलेगा…संकटग्रस्त वन्यजीव रहे है यहाँ…….कहा नो-गो एरिया घोषित करें.
गर्वित मातृभूमि रायपुर :- देश प्रदेश मे चर्चित हसदेव अरण्य क्षेत्र मे नई खदान खोलने के विरोध के साथ नया मोड़ आ गया है. जहाँ केंद्र और राज्य सरकारें खदान के लिए अनुमति देने को राजी हैं वहीं अब एक अध्ययन के बाद केंद्र सरकार की ही एजेंसी कह रही है कि अगर इस क्षेत्र मे नई खदान खोली गई तो इसके परिणाम बहुत भयानक होंगे.
हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड क्षेत्र की जैव विविधता का और वहां के जीवो पर पड़ने वाले असर का निर्धारण करने उपरांत भारत सरकार की एक सर्वोच्च संस्था ‘भारतीय वन्यजीव संस्थान’ (वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया) ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है.
भारत सरकार वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2011 में 1898 हेक्टर में परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक के लिए स्टेज वन की अनुमति प्रदान की. जबकि भारत सरकार की ही फॉरेस्ट एडवाइजरी कमिटी ने इस आबंटन को निरस्त करने की अनुशंसा की थी. बाद में 2012 में स्टेज 2 का फाइनल क्लीयरेंस भी जारी कर दिया गया और 2013 में माइनिंग कार्य चालू हो गई. इस आदेश से व्यथित होकर छत्तीसगढ़ के सुदीप श्रीवास्तव ने एनजीटी, प्रिंसिपल बेंच में अपील दायर की. एनजीटी ने कार्यों को निलंबित कर दिया तथा आदेशित किया की पर्यावरण और वन मंत्रालय फॉरेस्ट एडवाइजरी कमिटी से नई राय लेगी. एनजीटी ने सुझाव दिया कि इसके लिए भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद और भारतीय वन्यजीव संस्थान से एडवाइज, राय और स्पेशलाइज्ड नॉलेज ले सकती है. हालांकि यह यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है. इसके बाद वर्ष 2017 में पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने केन्ते एक्सटेंशन का अप्रूवल इस शर्त के साथ जारी किया कि दोनों संस्थाओं से हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड की जैव विविधता पर रिपोर्ट ली जाएगी.
रिपोर्ट मे क्या दी है चेतावनी?
हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड, छत्तीसगढ़ के 3 जिलों सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा में फैला बहुमूल्य जैव विविधता वाला वन क्षेत्र है. जिसमें परसा. परसा ईस्ट केते बासन, तारा सेंट्रल और केन्ते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक आते हैं. वर्तमान में सिर्फ परसा ईस्ट केते बासन में माइनिंग चालू है.
277 पेज की रिपोर्ट में भारतीय वन्यजीव संस्थान ने सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि देश के 1 प्रतिशत हाथी छत्तीसगढ़ में हैं, जबकि हाथी मानव द्वंद में 15 प्रतिशत जनहानि छत्तीसगढ़ में होती है. रिपोर्ट में उल्लेखित किया गया है कि किसी एक स्थान पर कोल माइनिंग चालू की जाती है तो उससे हाथी वहां से हटने को मजबूर हो जाते हैं और दूसरे स्थान पर पहुंचने लगते हैं, जिससे नए स्थान पर हाथी-मानव द्वंद बढ़ने लगता है. ऐसे में हाथियों के अखंड आवास, हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड क्षेत्र में नई माइन खोलने से दूसरे क्षेत्रों में मानव-हाथी द्वंद इतना बढ़ेगा कि राज्य को संभालना मुश्किल हो जाएगा.
रिपोर्ट मे कहा.. ” नो गो एरिया घोषित करें”
एनजीटी ने अपने आदेश में कुछ प्रश्नों का उत्तर देने को आदेशित किया था. जिनमें से कुछ प्रश्न थे:-
(अ) अगर माइनिंग के पक्ष में है तो क्या शर्ते डालना चाहेंगे?
रिपोर्ट में भारतीय वन्य जीव संस्थान ने कहा कि वर्तमान में परसा ईस्ट केते बासन में माइनिंग चालू है और माइनिंग की अनुमति सिर्फ इसी के लिए रहनी चाहिए. अद्वितीय, अनमोल और समृद्ध जैव विविधता और सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों को देखते हुए हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड का और उसके चारों तरफ का एरिया नो-गो एरिया घोषित किया जाना चाहिए.
(ब) क्या परसा ईस्ट केते बासन क्षेत्र में संकटग्रस्त वनस्पति और जीव जंतु थे और हैं?
इसके जवाब में भारतीय वन्य जीव संस्थान ने रिपोर्ट मे कहा….हां यहाँ दुर्लभ, संकटग्रस्त और विलुप्तप्राय वन्यप्राणी थे और है.
(स) क्या हसदेव अरंड कोल फील्ड क्षेत्र में वन्यजीवों, विशेष रूप से हाथियों का कारीडोर है?
भारतीय वन्यजीव संस्थान ने रिपोर्ट मे कहा…. हां… हसदेव अरण्य मैं पूरे वर्ष भर हाथी रहते हैं. यहां तक कि कोरबा वन मंडल में, हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड क्षेत्र के पास बाघ भी देखा गया है. हसदेव अरंड कोल्ड फील्ड की अचानकमार टाइगर रिजर्व, भोरमदेव वन्यजीव अभ्यारण तथा कान्हा टाइगर रिज़र्व से जुड़ा हुआ है.
आदिवासी वन पर आश्रित है
रिपोर्ट में बताया गया है कि हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड और उसके आसपास के क्षेत्र में प्रधान रूप से आदिवासी रहते हैं. जो कि वनों पर बहुत ज्यादा आश्रित है. नान टिंबर फॉरेस्ट प्रोड्यूस से इन्हें 46 प्रतिशत मासिक आय होती है. इसमे जलाऊ लकड़ी, पशुओं का चारा, दवाई वाली वनस्पति, पानी शामिल नहीं है. अगर इनको शामिल कर लिया जाए कम से कम से कम 60 से 70 प्रतिशत इनकी आय वनों से होती है. स्थानीय समुदाय माइनिंग के पक्ष में नहीं है.
संकटग्रस्त और विलुप्तप्राय वन्यप्राणियों का घर है हसदेव अरण्य
भारतीय वनजीव संस्थान ने यहाँ कई वन्य प्राणियों की कैमरे में उपस्थीती पाई. जिनमे भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अधिसूची एक के हाथी, भालू, भेडिया, बिज्जू, तेंदुआ, चोसिंगा, रस्टी स्पॉटेड बिल्ली, विशाल गिलहरी, पैंगोलिन. अधिसूची दो के सियार, जंगली बिल्ली, लोमड़ी, लाल मुह के बन्दर, लंगूर, पाम सीवेट, स्माल सीवेट, रूडी नेवला, कॉमन नेवला. अधिसूची तीन के लकड़बग्गा, स्पॉटेड डिअर, बार्किंग डिअर, जंगली सूअर. अधिसूची तीन के खरगोश, साही शामिल है. आईयूसीएन की रेट लिस्ट के अनुसार यहां पर दो प्रजातियां विलुप्तप्राय श्रेणी की है तीन संकटग्रस्त है पांच पर खतरा आ सकता है और 15 सामान्य है. रिपोर्ट में इसके अलावा बताया गया है कि इस क्षेत्र में 92 प्रकार के पक्षी भी रहते हैं, क्षेत्र की वनस्पति पर भी प्रकाश डाला गया है.