मिथहासिक- झूठ को परास्त करने, वास्तविक-ऐतिहासिक प्रमाणित शोध तथ्य प्रकाश के कारण, गुरुघासीदास व सतनाम विषय संदर्भित- GSS कैडर बुक- आम व खास लोगों के बीच जन चर्चित व लोकप्रिय बन रहा है।
रिपोर्टर – गर्वित मातृभूमि बेमेतरा से दुर्गम दास की रिपोर्ट
बरसों-बरस से गुरुघासीदास व सतनाम पर अनैतिहासिक गप्प कथा परोसने वाले [जिससे गुरुघासीदास के अनुगामी,दास-जपर्रा- लबड़धोंधो-हूंकारु भरने वाला चेला, बन जाए और लोमड़ी चालाकी से कथित मुखिया लोग “गुरु के पांव दबाए ले असंत बने और लोगन के गला दबा के महंत बने” जैसा हाल] बड़ी संख्या में मौजूद नेता-पंडा, लिखंता-पढ़ंता के बुरे दिन आ रहे हैं।
क्योंकि, अब “गुरुघासीदास विचार शोध संस्था [GVSS]” द्वारा शोधित एवं “गुरुघासीदास सेवादार संघ [GSS]” द्वारा प्रकाशित- प्रचारित [लेखक – लखन सुबोध-GSS प्रमुख] GSS कैडर बुक को पढ़ने-जानने से सही ऐतिहासिक जानकारी मिल रही है। लेकिन कहा गया है कि, चोर चोरी करना छोड़ देगा, लेकिन हेराफेरी तो करेगा ही। ऐसे ही जो GVSS/GSS के प्रतिपादनो का नकल करने की कोशिश भी अब आम हो गया है। लेकिन नकल के लिए भी अकल चाहिए।
GVSS/GSS के शोध निष्कर्ष- प्रतिपादन-आयोजन में ऐसे कई तथ्यों को ढपोरशंखी लोग मुंह चुराते [कई लोग तो यह भी नहीं करके “नकटा के नाक कटे सवा हाथ बाढ़े” जैसा करते हैं] मानते- दिखाते हैं। लेकिन इसकी खोज प्रकाश का श्रेय GVSS/GSS को नहीं देते।
वे अपने बड़े आर्य- वैदिक गुरुघंटालों की तरह, जो हर वैज्ञानिक खोज अविष्कार को, हमारे वेदों/पुराणों में बहुत पहले से है,कहकर “हुआं-हुआं” करते फूहड़ कॉमेडी करते हैं- वैसे ही ये GVSS/GSS के शोध- खोज को वैदिक चेले सतनामी महंत – सहंत हम बहुत पहले से बताते “हुआं-हुआं” का फूहड़ कॉमेडी करते हैं।
इसके लिए एक- दो उदाहरण देना प्रासंगिक होगा 1) निर्विवाद रूप से यह सबकी जानकारी में है कि, GVSS/GSS के पूर्व कभी- किसी ने गुरुबालकदास की गाथा-चित्र को खोजा-प्रचारित नहीं किया था। लेकिन आज वे लोग लाइलाज बेशरमो की तरह ये गुरूबालकदास की मूर्ति स्थापना- उत्सव मनाएंगे, लेकिन कभी GVSS/GSS के इस पर योगदान की भूलकर भी चर्चा नहीं करेंगे। इसी तरह सतनाम धर्म/ SDSSPS कानून बनाने के मुद्दे पर करते हैं।
2) आदिवासियों-सतनामियों के बीच दुश्मनी फैलाने वाले एवं शहीद वीरनारायण सिंह एवं उनके पूरे आदिवासी समुदाय को लिखित किताबों में गाली देने वाले प्रमाणित अपराधी लेखक और उनके गुरु- नेताओं ने GVSS/GSS की इतिहासिक इस खोज की कि, शहीद गुरुबालकदास व शहीद वीरनारायणसिंह शत्रु नहीं मित्र कहे को, आधार मानकर “फिल्म” बना रहे हैं। लेकिन भूलकर भी GVSS/GSS का नाम नहीं लेंगे। अस्तु।
सत परेशान होता/किया जाता है। लेकिन अंतिम विजय सत की ही होती है। धीरे से ही सही GSS कैडर बुक का “सत” विजय की ओर बढ़ रहा है। लोग GSS की प्रतिस्थापनाओं को जानने- मानने लगे हैं।
इसका एक बड़ा उदाहरण है- भारत के बहु चर्चित व्यक्तित्व बामसेफ प्रमुख श्री वामन मेश्राम के इस इच्छा का कि, वे गुरुघासीदास व सतनाम पर ऐतिहासिक-प्रमाणित जानकारी चाहते हैं, तो उनके सहयोगियों ने उन्हें इस विषय पर GSS कैडर बुक भेंट किया।
हमें आशा- विश्वास है कि, जपर्रावाद- झूठ का अंधेरा हटेगा और खर्रावाद सत का उजाला धवल प्रकाश फैलेगा।