आध्यात्मिक सौंदर्य को सामाजिक सौंदर्य के सूत्र में बांधने का कार्य आदि शंकराचार्य ने किया:-स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि… देखिए आज की खास खबर…
*आध्यात्मिक सौंदर्य को सामाजिक सौंदर्य के सूत्र में बांधने का कार्य आदि शंकराचार्य ने किया:-स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि*
*आदि शंकराचार्य जी की जयंती पर समरसता सेवा संगठन ने किया विचार गोष्ठी का आयोजन*
गर्वित मातृभूमि (राकेश विश्वकर्मा) जबलपुर। जगदगुरू आदि शंकराचार्य जी की जयंती पर समरसता सेवा संगठन द्वारा विचार गोष्ठी का आयोजन श्री जानकीरमण महाविद्यालय सभागार में किया गया जिसमें वक्ताओं ने स्वामी जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी के अद्वैत दर्शन और उनके जीवनदर्शन पर अपने विचार प्रकट किए स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने जगतगुरू शंकराचार्य जी की जयंती पर आयोजित विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि आदि शंकराचार्य के रूप में एक अद्वितीय प्रतिभा का जन्म हुआ जिसने एकात्मता के सूत्र में सभी को अर्थात पूरे विश्व को बांधने का काम किया मात्र 32 वर्ष की आयु प्राप्त करने वाले आदि जगदगुरू शंकराचार्य ने पूरी दुनिया को अध्यात्म से जोड़ने हेतु अनेकों श्रेष्ठतम कार्य किए वह ईश्वरीय शक्ति के समान तथा अंश अवतार थे, लोग पूछते हैं आपकी सनातन संस्कृति की शक्ति क्या है तब हम बताते हैं हमारी सनातन संस्कृति में ईश्वर ही सब कुछ करने में समर्थ है जो एक स्थान से सब कुछ करने में सक्षम है हमारी सनातन संस्कृति को पूरी दुनिया सर्वोपरि मानती है, जगतगुरु भगवान आदि शंकराचार्य ने यह संदेश दिया कि साधना करते हैं जीवन की और मोक्ष की हम मृत्यु को नहीं मोक्ष को मानते है और राष्ट्र के जीवन मूल्यों के रक्षण के लिए साधना आवश्यक है और हम जीवन की और मोक्ष की साधना करते है, आदि शंकराचार्य ने जिस तरह आध्यात्मिक सौंदर्य को सामाजिक सौंदर्य के सूत्र में बांधने का कार्य किया है उनके जीवन दर्शन का आज पूरी दुनिया लोहा मानती है।स्वामी अखिलेश्वर आनंद गिरि ने जगतगुरू आदि शंकराचार्य जी के जीवन दर्शन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आदि शंकराचार्य अपने गुरु की खोज में ओमकारेश्वर तक पहुंचे जहां उन्हें अपने गुरु से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और वहीं पर आदि शंकराचार्य ने मां नर्मदाष्टक की रचना की। ऐसी ईश्वरीय शक्ति जिसने 8 वर्ष की आयु में वेदों का ज्ञान लिया और 16 वर्ष की आयु में उन पर भाष्य दिया और बाकी 16 वर्षों में हिमालय तक तपस्या कर भारत में हो रहे विचारों के मतांतर पर जब भारत विचारों के कारण खंड खंड होने की स्थिति में था तब उन्होंने सारे विचारों का समन्वय अद्वैत से किया और भारत को एक किया आज यदि भारत इस स्थिति में है तो उसका पूरा श्रेय आदि शंकराचार्य जी को जाता है उनके जीवन दर्शन से भी समरसता का ज्ञान ले सकते हैं श्री स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरी ने कहा की आज आदि शंकराचार्य जी की जयंती पर समरसता सेवा संगठन ने विचार गोष्ठी का आयोजन किया समरसता सेवा संगठन का ध्येय वाक्य कि सबको जाने-सबको माने यही भारत की एकता और समरसता को मजबूत करने का काम करेगा और सामाजिक समरसता का मूल स्वर ही हमारी संस्कृति में है lसतयुग से लेकर आज तक सामाजिक समरसता को संतो ने सदैव मुखरित करने का काम किया है यह विश्वास से कहा जा सकता है कि समरसता सेवा संगठन संस्कार धानी के बाद पूरे भारत में बहुत गति के साथ आगे बढ़ेगा ।डॉ संध्या जैन “श्रुति” ने गोष्ठी में आदि शंकराचार्य के दर्शन पर विचार प्रकट करते हुए कहा कि हमारे यहां के लोगों का ज्ञान इतना समृद्ध था कि दुनिया के सभी लोग भारत के प्रशंसक बने सबसे पहले हमारे भारत ने ही वसुधेव कुटुंबकम का वाक्य दिया जिसका अर्थ यह है कि सारी धरती एक परिवार तरह है और यदि दुनिया सभी के मन में यह बात आ जाती है तो किसी के मन में मत अंतर नहीं रहेगा यही सामाजिक समरसता का सबसे अच्छा उदाहरण है वैदिक साहित्य जीवन के मूल्यों को स्थापित करने में सदा समर्थ रहा है। सांख्य दर्शन, योगदर्शन, न्याय दर्शन और मीमांसा दर्शन, वेदांत दर्शन के माध्यम से भारत ने विश्व में दार्शनिक परंपरा को स्थापित किया और अपना नेतृत्व भी प्रदान किया यह सारी मीमांसा हमें आदि शंकराचार्य से ही प्राप्त हुई हैं और आज जरूरत है कि राष्ट्रहित में हम सब एक होकर कार्य करे और निश्चित ही समरसता सेवा संगठन शंकराचार्य जी के अद्वैत के सिद्धांतो को लेकर आगे बढ़ रहा है जिसमे स्पष्ट है कि मिथ्या सिद्धांतों को खंडित किया जाना चाहिए और सब को एक सूत्र में बंधकर काम करना चाहिए।समरसता सेवा संगठन के अध्यक्ष श्री संदीप जैन ने संगोष्ठी की प्रस्तावना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सामाजिक समरसता की चेतना भारतवर्ष में अनादि काल से चली आ रही है परंतु कालांतर में लोगों ने समरसता में खंड़ता उत्पन्न कर दी जिसे दूर करने का प्रयास निरंतर जारी रहा है अब जबकि मां भारती परम वैभव पर पहुंचने के लगभग करीब है तब सामाजिक समरसता के क्षेत्र में सभी का भारत के नवनिर्माण में अपना योगदान होना चाहिए इस हेतु समरसता सेवा संगठन की स्थापना की गई है ताकि सभी लोग सबको माने और सबको जाने इस ध्येय वाक्य के साथ भारत के नव निर्माण में अपना योगदान दे सकें सभी संतजनोंं के ज्ञान से पल्लवित होकर भारत की एकता और अखंडता के लिए काम करते हुए भारत को विश्वगुरु बनाने हेतु आगे बढ़े।संगोष्ठी की अध्यक्षता जानकी रमन महाविद्यालय के प्राचार्य श्री अभिजात कृष्ण त्रिपाठी ने की। समरसता सेवा संगठन के सचिव उज्जवल पचौरी ने कार्यक्रम का संचालन किया।इस अवसर पर अभिमन्यु जैन, सुरेश विचित्र, अतुल जैन दानी, सहित अन्य गणमान्य नागरिक, समरसता सेवा संगठन के सदस्यों सहित भारी संख्या में युवा उपस्थित थे।