December 23, 2024

“छत्तीसगढ़ के पचरी धाम कवि सम्मेलन में स्वर लहरियों से सराबोर हुए श्रोतागण”

“छत्तीसगढ़ के पचरी धाम कवि सम्मेलन में स्वर लहरियों से सराबोर हुए श्रोतागण”

गर्वित मातृभूमि/एजेंसी:- सन्त शिरोमणि गुरु घासीदास जी के पावन स्मरण से कुण्ड में अग्नि प्रज्वलित होने के उपलक्ष्य में सन् 1942 में स्थापित पचरीधाम की पहचान पूरे देश में है। सत्यखोजी लोग अक्सर यहाँ माथा टेकने आते हैं। छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के तत्वावधान में 8 नवम्बर 2022 को पचरी धाम की इस पावन धरा पर साहित्य वाचस्पति डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति द्वारा सम्पादकीय कृति- ‘माँ’ राष्ट्रीय साझा काव्य संग्रह तथा मौलिक कृति- ‘माटी के रंग’ काव्य संग्रह का विमोचन सम्पन्न हुआ।
सर्वप्रथम 7 जिलों से पधारे 23 साहित्यकारों द्वारा सतनाम सागर के मनोरम तट पर स्थित गुरु गद्दी की पूजा अर्चना कर राजमहन्त एवं जनप्रतिनिधियों की गरिमामयी उपस्थिति में करतल ध्वनि के बीच उपर्युक्त दोनों पुस्तकों का लोकार्पण अभूतपूर्व उत्साह के माहौल में सम्पन्न हुआ। अपरान्ह 2 बजे से श्रोताओं से खचाखच भरे मेला स्थल में नामी कवियों, गीतकारों, ग़ज़लकारों एवं छंदकारों की स्वर लहरियों से श्रोतागण सराबोर हो गए। तालियों की गड़गड़ाहट से देखते ही देखते इन्द्रधनुषी छटा दृश्यमान होने लगी। श्रोतागण स्वर लहरियों से ताल मिलाकर ताली बजाते हुए झूम उठे। कवि सम्मेलन की शुरुआत विख्यात ग़ज़लकार एवं मंच संचालक मनोज खाण्डे ‘मन’ ने अपनी इन पंक्तियों से की-
ढूँढ़ता हूँ तुझे माँ कहॉं हो सुनो,
लौटकर आजा अभी जहाँ हो सुनो,
आपके पाँव की धूल जैसा रहूँ
छाँव दे दो मुझे आसरा हो सुनो।
तत्पश्चात छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के अध्यक्ष तथा हाल ही में दुनिया के ‘सर्वाधिक होनहार लेखक’ के रूप में जैकी बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज ‘टैलेंट आइकॉन- 2022’ डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति ने पुस्तक विमोचन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के तत्वावधान में देश के 51 साहित्यकारों का साझा संकलन के प्रकाशन का उद्देश्य माता-पिता के प्रति सन्तान को दायित्व बोध कराना है। उन्होंने कहा कि दुनिया में कुछ चीजें दोबारा पाई जा सकती है, लेकिन माँ-बाप नहीं। करतल ध्वनि के बीच उन्होंने ‘माँ’ के सम्मान में ये पंक्तियाँ पढ़ी-
तू सृष्टा तू जननी, तू संकटमोचनी तू प्राणदायिनी
तू शुरू तू गुरु, तू कल्याणी तू फलदायिनी
तू ममतामयी तू पालिनी, तू सर्वव्यापी तू सर्वदायिनी
सारे भव को दे वरदां,
तेरा साथ सदा रहे माँ।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति ने आगे कहा कि माटी के बिना ब्रह्माण्ड की परिकल्पना नहीं की जा सकती। अन्न-जल की प्राप्ति, फूलों की खुशबू और पेड़-पौधों की हरियाली भी मिट्टी पर ही अवलम्बित है। सोने और हीरे भी मिट्टी के गर्भ से ही निकले हैं। माटी, माता के समान है, इसलिए वो सर्वथा वन्दनीय है। ‘माँ’ और ‘माटी के रंग’ का साथ-साथ विमोचन होना सिर्फ एक संयोग नहीं, वरन माँ और माटी का परस्पर पर्यायवाची होने का अटूट प्रमाण है। उन्होंने अपनी इस भावना को इन शब्दों में स्वर दिया-
इहाँ के माटी चोवा-चन्दन, करौं एकर परनाम रे,
सरल भाखा म अही कहौं, माटी मोर मितान रे।
ए माटी के काया हर आय, चार दिन के मेहमान रे,
दाई-ददा के आशीष ले बढ़के, नइये कोनो बरदान रे।।
करतल ध्वनि के बीच कार्यक्रम को अगले पड़ाव की ओर ले जाते हुए मंच संचालक ने कहा कि छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के कलाकारों में कुछ अच्छा कर दिखाने का जुनून है। यही वजह है कि अत्यल्प समय में तकरीबन दो दर्जन कलमकारों का आज पचरी धाम में आगमन इस बात की सनद है। ये सच है कि-
करम अच्छा न हो तो बज्म में शोहरत नहीं मिलती,
कहे जो सच हर एक शख्स में हिम्मत नहीं मिलती।
पश्चात पुस्तक विमोचन और कवि सम्मेलन के महत्व को रेखांकित करते हुए रायगढ़ से पधारे कवि तिलक तनौदी ने इन पंक्तियों के साथ उसे खूबसूरत अन्दाज में पेश किया-
दो पुस्तक के बिमोचन अउ कवि सम्मेलन आज
धन्यवाद किशन भईया के, पूरा करिच जेन काज
जुरियाए मनखे के मेहा, पग बंदँव कर जोर
बिनती झोंक आशीष देवव, अही कामना मोर
चन्दन माटी पचरी धाम के, ‘तिलक’ नवावय माथ,
रहय गुरु के किरपा सब दिन, दया-मया के साथ।
ये सच है कि एहसासों के पाँव नहीं होते, फिर भी वो दिल तक पहुँच जाते हैं। रायपुर से पधारी हुई कवयित्री श्रीमती गंगा शरण पासी ने ‘बेटी’ पर यह कविता पढ़ी-
माँ-बाप ने बेटी को बहुत प्यार दिया
तब उसे लगा कि यही जीवन की सच्चाई है
दुनिया में बस अच्छाई ही अच्छाई है
लेकिन एक दिन प्यार का घरौंदा टूट गया
जब लोगों ने कहा- अरी लड़की तू बोझ है
दुनिया वालों की तो यही सोच है।
इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए मंच संचालक मनोज खाण्डे मन ‘बेटी’ पर ये शानदार ग़ज़ल गाकर लोगों को सोचने पर विवश कर दिया-
देश में किस तरह माहौल हम लाने लगे,
बेसबब हम बेटियों पर क्यों सितम ढाने लगे?
खादी-खाकी वालों पर कैसे भरोसा हम करें,
कातिलों के साथ अक्सर ये नजर आने लगे।।
ग़ज़ल के खुशनुमा माहौल को विस्तार देते हुए बिलासपुर से पधारे ग़ज़लकार डॉ. दुर्गाप्रसाद मेरसा ने यह ग़ज़ल गाकर लोगों को वाह-वाह कहने पर विवश कर दिया-
महल हम पर मेहरबान कब थे,
झोपड़ियों में जिंदा इंसान कब थे।
हो रहे मजहब पर रोज कत्लेआम,
पूछते हो कि लहू-लुहान कब थे।।
मुस्कुराहट से बढ़कर कोई औषधि नहीं होती। ये ऐसी दवा है, जो कहीं बिकती नहीं। केवल दिल से निकल कर होठों पर फैलती है। तभी तो कवि वेद प्रकाश तालियों के शोर के बीच मुस्कुराहट बिखेरते हुए सलाह देते हैं-
बहुत जरूरी है जिन्दगी में मुस्कुराना सभी को,
कभी खुशी और कभी गम भी जताना सभी को।
पश्चात वीर रस के कवि जगतारण प्रसाद डहरे ने मंच संचालन की शुरुआत करते हुए छत्तीसगढ़ राज्य के 23 वें वर्ष में प्रवेश को लेकर अपनी चिर परिचित शैली में उसे स्वरों से इसप्रकार आबद्ध किया-
रठगे कलकुत के जांगर, छँटगे अब दुख के बादर,
सुरुज बनके भाग चमके, हमर छत्तीसगढ़ राज बनगे।
बेशक शब्द ही दिमाग को पंख देते हैं। फिर यहीं से शुरुआत होती है नवजागरण की। तत्पश्चात विचारों के जाल भूत और भविष्य के गलियारों में बुने जाते हैं। बेमेतरा से पधारे कवि गणेश महंत ‘नवलपुरिहा’ की ये पंक्तियाँ इसकी साक्षी हैं-
कोई तो हो खड़ा गुरु घासीदास की तरह
मानव-मानव को एक पथ में चलाने वाले,
ऊँच-नीच जाति व्यवस्था को मिटाने वाले।
सच में सफलता का कोई फार्मूला नहीं है। अपना रास्ता खुद को ही बनाना पड़ता है। तभी तो जागरण के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए कवि चंद्रहास जागृति ने अपने नाम के अनुरूप ‘जागृति’ पर बल देते हुए ये रचनाएँ पढ़कर खूब तालियाँ बटोरी-
आया है सो जाएगा, राजा रंक फकीर,
पसीने की बूंदों से ही लिखी जाती तकदीर।
दुनिया की तमाम मुश्किलों, दुःख और तनाव के बादल को सिर्फ एक विस्फोट से उड़ाया जा सकता है। और यह विस्फोट है- हँसी का। जब मणीशंकर दिवाकर गदगद जैसे हास्य कवि माइक थाम ले तो फिर क्या कहने? फिर न तो हँसी रूकती है और न ही तालियों की गड़गड़ाहट का शोर। अगर यकीन ना हो तो इन पंक्तियों पर जरा गौर फरमाइए-
मोरो जोकिन सुनव, बहुत नहीं थोकिन सुनव,
कुँवारा लइका मन सुक्खा सादा जिनगी बिताहु रे,
मया पिरित के डोर कोनो टूरी संग झन लगाहु रे
बात बिसउहा डोकरा के, करम फूटगे ओकर छोकरा के।
महंगाई सुरसा के मुँह की तरह दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती ही जा रही है, किन्तु भारतीय रुपया गिर रहा है। इसे ही लक्ष्य करते हुए बेमेतरा के कवि रमेश रसिय्यार ने इन पंक्तियों द्वारा प्रहार किया-
अगाश ल छुवत हे बजार के महंगाई
अइसन म गुजारा कइसे चलही ददा-दाई
सुन के भाव साग भाजी के पेट ह अइसने भर जाथे
महंगाई के मारे मन के इच्छा, मने म रहिके मर जाथे
पाँव जमा के बइठगे जइसे घर जमाई,
अइसन म गुजारा कईसे चलही मोर भाई।
पश्चात तालियों की गूंजते शोर के मध्य कोरबा की कवयित्री कौशल्या खुराना ने एक बार फिर माँ की ममता के मोल को अपनी इन पंक्तियों में मनमोहक स्वर दिया-
जब- जब जीवन पाऊँ माँ तेरा आंचल पाऊँ
तेरी लोरी सुनकर निंदिया में खो जाऊँ
तेरी मूरत माँ अपनी आँखों में भर पाऊँ
बन्द हो मेरी आँखें तब भी तुझे देख पाऊँ।
ये जरूरी नहीं कि हमेशा बुरे कर्मों की वजह से ही दर्द सहने को मिले। कई बार तो हद से ज्यादा अच्छा होने की भी कीमत अदा करनी पड़ती है। शोषण की व्यवस्था में तो ऐसा ही हो रहा है। अगर यकीन ना हो तो छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के संरक्षक डॉ. गोवर्धन की ये पंक्तियाँ इसका सबूत है-
अगर तू बुद्धिमान है, बलवान है तो सुन,
शोषकों के खिलाफ सोच बना, ताकत बता
नहीं तो जा, किसी कोने में सोजा।
गहराती रात में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कार्यक्रम को समापन की ओर ले जाते हुए छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के संस्थापक-अध्यक्ष डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति (उपसंचालक, छत्तीसगढ़ शासन महिला एवं बाल विकास) ने कार्यक्रम में पधारे हुए समस्त कलमकारों को कलम भेंटकर सम्मान करने वाले राजमहन्त कीर्तन लाल भारद्वाज और सुन्दर व्यवस्था के लिए ग्राम पंचायत एवं मेला समिति के पदाधिकारियों तथा उपस्थित जनता जनार्दन का आभार व्यक्त कर धन्यवाद ज्ञापित करते हुए अपनी इन पंक्तियों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया-
दाई-ददा ले बढ़के नइये, जग म कोनो भगवान रे,
सर्बस अपन समरपन करथे, झन बनबे अनजान रे।
जिनगी म कतको बिपत आही, झन करबे कभू अपमान रे,
दाई-ददा के सेवा कर लेबे, अही ह जस के खदान रे।
छत्तीसगढ़ शासन से राज्य स्तरीय समिति के रूप में पंजीकृत छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के संयोजन में यह चतुर्थ कवि सम्मेलन इस बात का प्रमाण है कि इक्कीसवीं सदी में कवि सम्मेलन ही बहुआयामी जन-जागरण एवं स्वस्थ मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण आधार है यह जानकारी मणीशंकर दिवाकर
” गदगद ” ने दी !

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *