लोग क्यों कहते हैं “हे ईश्वर, तुमने हमें कुछ नहीं दिया
लोग क्यों कहते हैं “हे ईश्वर, तुमने हमें कुछ नहीं दिया
गर्वित मातृभूमि/रायपुर:- संसार में कितने ही असभ्य लोग देखे जाते हैं, जो पुरुषार्थ तो कम करते हैं, फिर भी ईश्वर से हमेशा मांगते ही रहते हैं। “ईश्वर ने उन को उनके पुरुषार्थ के अनुसार बहुत अधिक संपत्तियां सुविधाएं और सुख पहले से दे भी रखा है, फिर भी उनको संतोष नहीं होता। और तब भी वे ईश्वर को कोसते तथा गालियां देते रहते हैं, कि “हे ईश्वर, तुमने हमें कुछ नहीं दिया।” ऐसा करना ईश्वर के प्रति अत्यंत असभ्यता है। इसका उनको बहुत अधिक दंड मिलेगा। ऐसी असभ्यता से सबको बचना चाहिए।”
जब आप, दूसरे लोगों के साथ सामान्य रूप से व्यवहार करते हैं, तब उनको कुछ सहयोग देते हैं, और कुछ सहयोग उनसे लेते भी हैं। *”जहां आप सहयोग देते हैं, तो वहां यह आशा भी रखते हैं, कि सामने वाला व्यक्ति कम से कम मुझे धन्यवाद तो कहेगा! और यदि वह धन्यवाद कह देता है, कुछ सभ्यता और नम्रता से बात करता है, तो आपको अच्छा लगता है।”
“इसी प्रकार से जब आप किसी से सहयोग लेते हैं, और आप सभ्यता तथा नम्रतापूर्वक उसे धन्यवाद कहते हैं, उसका आभार व्यक्त करते हैं, तो उसे भी अच्छा लगता है।” यह तो हुई मनुष्यों की बात। मनुष्यों को इस प्रकार का व्यवहार करने से अच्छा लगता है।
अब बात करें ईश्वर की । ईश्वर से भी हम/आप बहुत सा सहयोग लेते रहते हैं। उसे देते तो कुछ भी नहीं। उसे दे भी नहीं सकते। हमारे पास कुछ है भी नहीं, उसे देने के लिए। *”बल्कि उसी की दी हुई वस्तुओं से तो हमारा आपका सबका गुज़ारा चल रहा है।” “उसे हमारी किसी वस्तु की आवश्यकता भी नहीं है, इसलिए वह हमसे कुछ लेता भी नहीं है।”
हां, हमारी/आपकी बहुत सी आवश्यकताएं हैं, जिन्हें हम/आप ईश्वर की सहायता से पूरा करना चाहते हैं। *”जैसे धन बल विद्या बुद्धि पुत्र परिवार मान सम्मान और मोक्ष इत्यादि, बहुत सारी चीजें हमें चाहिएं। हम बार-बार ईश्वर से ये सब चीज़ें मांगते ही रहते हैं। और ईश्वर देता भी रहता है। परंतु वह देता है अपने नियम के अनुसार।”ईश्वर का नियम है, कि “यदि आप पुरुषार्थी बनो, तो मैं सब कुछ दूंगा।” “जो लोग ईश्वर से मांगते रहते हैं, और पुरुषार्थ भी करते हैं, तो ईश्वर उन्हें सब कुछ देता भी है।”
इस सारी प्रक्रिया में हमें/आपको यह ध्यान रखना चाहिए, कि “जैसे हम मनुष्यों से सहयोग लेते हैं, और उन्हें आभार/धन्यवाद कहते हैं, इसी प्रकार से ईश्वर से भी जब से हम कुछ सहयोग लेते हैं, तो उसे भी धन्यवाद कहना चाहिए। यह सभ्यता है।” “यद्यपि हमारे धन्यवाद कहने से, मनुष्यों की तरह ईश्वर प्रसन्न नहीं हो जाएगा। उसका आनंद नहीं बढ़ेगा। परन्तु हमारी सभ्यता अवश्य बनी रहेगी, जिसके कारण ईश्वर हमें अच्छा व्यक्ति मानेगा, और आगे भी सहयोग देता रहेगा।” क्योंकि यह सभ्यता की बात है, कि
“यदि किसी से कुछ सहयोग लिया जाए, तो उसका आभार भी नम्रतापूर्वक व्यक्त करना चाहिए।”
“इसलिए अगली वस्तु मांगने से पहले, अब तक जो कुछ ईश्वर से आपको मिला है, उसका ठीक प्रकार से धन्यवाद करें। नम्रतापूर्वक ईश्वर का आभार व्यक्त करें। और उसके बाद ही कुछ अगली वस्तु मांगें।” “ईश्वर आपसे कोई वस्तु तो चाहता या मांगता नहीं। फिर भी ईश्वर से इतनी वस्तुएं प्राप्त कर के, कम से कम उसका शब्दों से धन्यवाद तो करना ही चाहिए। ईश्वर के साथ इतनी सभ्यता तो निभानी ही चाहिए। तभी हम/आप एक सभ्य मनुष्य कहलाएंगे।”